ustad bismillah khan { उस्ताद बिस्मिल्लाह खान }
शहनाई का यह जादूगर आज हमारे बीच नहीं है । लेक़िन क्या बात रही होगी इस शख्स में जो उन्हें भारत रत्न , पद्म विभूषण , और पद्मश्री जैसे सम्मान से नवाज़ा गया । जिनके चाहने वालों में हर उम्र का इंसान था , है और रहेगा । जिन्होंने अपने शहनाई वादन के फ़न के बूते देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी धाक जमाई और एक कभी धुँधली न पड़ने वाली छाप छोड़ी …
आइये बिस्मिल्लाह के उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बनने की कहानी को जानने की कोशिश करते हैं ….
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान – प्रारम्भिक जीवन |
ustad bismillah khan – Early Life
यह 1916 का समय था , जब उस्ताद पैगंबर बख्श खान और मिट्ठन के यहाँ दूसरी बार किलकारियां गूंज रही थी , इससे पहले उनके यहाँ शम्शुद्दीन नाम का चिराग़ रोशन हो चुका था , इस बार बच्चे के होने पर नाम तय हुआ कमरुद्दीन लेकिन जैसे ही बच्चे की कानों में मिठास घोलने वाली किलकारियां गूंजी वैसे ही पिता के मुँह से जो पहला शब्द निकला वह था बिस्मिल्लाह । कमरुद्दीन का जन्म डुमगांव बिहार के एक संगीत प्रेमी घर में हुआ ।
उनके मामा सादिक हुसैन तथा अलीबख्श प्रसिद्ध शहनाई वादक थे । उनके पिता भी एक शहनाई वादक थे ।
कमरुद्दीन डुमगांव में पांच , छ वर्ष बिताकर अपने नाना के घर काशी आ गए थे । यहां उन्होंने अपने मामा अलिबख्श से शहनाई बजाना सीखा । नाना के घर रहते हुए वह अपने नाना को शहनाई बजाते हुए सुनते थे , और नाना के रियाज के पूरे होने के बाद उनकी शहनाई को ढूंढते थे । उन्हें लगता था कि उनके नाना उस शहनाई को कहीं छुपाकर रखते हैं जिससे मीठा संगीत निकलता है ।
उस्तादों के उस्ताद खान साहब फिल्मों के भी ख़ासे शौक़ीन थे , और गीताबाली के साथ सुलोचना के भी दीवाने थे , जवाँ होते बिस्मिल्लाह बालाजी मंदिर में शहनाई बजाने जाते थे , और जो मेहनताना मिलता था उसे इन अभिनेत्रियों की फिल्मों को देखने में ख़र्च करते थे ।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान – प्रसिद्धि की ओर पहला क़दम | Ustad bismillah khan – First step to fame
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब यूं तो 14 वर्ष की उम्र में ही पहला कार्यक्रम दिया था लेकिन 1937 – 38 में लखनऊ रेडियो पर उनका पहला प्रोग्राम रिकॉर्ड किया गया था , इसी समय के आस – पास ही उन्होंने विभिन्न जगहों पर प्रस्तुतियां दी , उनकी शहनाई का हुनर और उनका बेहतरीन प्रदर्शन उन्हें चर्चा में ला गया । और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा ।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान – 1947 का वह अदभुत छण | Ustad bismillah khan – The amazing moment of 1947
15 अगस्त 1947 का दिन सभी देशवासियों के लिए गौरव करने का दिन था । लेकिन उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब के लिए ये दिन दोगुनी ख़ुशी ले कर आया था । उन्हें बाक़ायदा जवाहरलाल नेहरू जी ने न्यौता देकर बुलवाया था , और नेहरू जी ने तिरंगा फहरानें के बाद उस्ताद से अपनी शहनाई से सुरों की सुगंध को फैलाने की गुजारिश की और इस तरह आज़ादी का वह दिन कई मायनों में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के लिए अविस्मरणीय बन गया । और 1997 में उन्होंने लाल किले में आजादी के 50 वर्ष पूरे होने पर एक बार फिर दीवान – ए – आम से शहनाई बजाई ।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान – बेहतरीन इंसान , बेमिसाल फनकार | Ustad Bismillah Khan – Best human being, unique artist
उस्ताद शहनाई के बगैर अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे । यहां तक कि वह शहनाई को अपनी दूसरी बेग़म भी कहते थे । इन सब के बावजूद साल में 10 दिन ऐसे भी होते थे जब वह मौसिकी से दूर रहते थे यह मोहर्रम के दिन होते थे इन दिनों न वे कोई प्रस्तुति देते थे और ना ही शहनाई बजाते थे । हां मोहर्रम के दिन इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत की याद में भावुक जरूर रहते । इस दिन वे खड़े होकर शहनाई बजाते और दाल मढ़ी से सात – आठ किलोमीटर की दूरी तक रोते हुए नोहा बजाते जाते थे ।
एक शिया मुसलमान होने के बावजूद उस्ताद बिस्मिल्लाह खान विश्वनाथ जी के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे । यहां तक कि जब वे किसी कार्यक्रम के सिलसिले में काशी के बाहर भी होते तो बालाजी मंदिर की दिशा की तरफ मुंह करके बैठते थे । एक भारत रत्न विजेता और 80 की उम्र में भी पांच वक्त का नमाजी होना .. ! एक इतने बड़े फनकार का ऐसा रूप हर इंसान के दिल में उनके लिए प्रेम और सम्मान जगाता है ।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान – पुरस्कार | Ustad Bismillah Khan – Awards
शहनाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को अपनी बेहतरीन शहनाई वादन के लिए उस्ताद जी को कई पुरस्कार मिले जिनमें कुछ प्रमुख निम्नलिखित है ।
भारत रत्न – 2001
पद्म श्री – 1961
पद्म भूषण – 1968
पद्म विभूषण – 1980
संगीत नाटक अकादमी – 1994
तथा तानसेन पुरस्कार
इसके साथ ही उनके सम्मान में एक औडिटोरियम 1992 तेहरान में समर्पित किया गया । जिसका नाम – उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के नाम पर तालार मौसिकी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान रखा गया ।
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उस्ताद बिस्मिल्लाह खान – मृत्यु | Ustad Bismillah Khan – Death
दुनिया को शहनाई की मिठास से रूबरू करवाने वाला यह फनकार 21 अगस्त 2006 को इस दुनिया से रुख़सत हो गया । उनकी शहनाई को भी उनके साथ सुपुर्द – ए – ख़ाक किया गया एवँ राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गयी ।
दोस्तों …
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब के जीवन को शब्दों , पन्नों या किताबों में समेटना संभव ही नहीं ..
संभव होगा भी कैसे ??
उनके जीवन में इतने गौरवपूर्ण क्षण आए हैं की एक पोस्ट में उनका वर्णन संभव नहीं , लेकिन फिर भी कुछ पुस्तिकाओं एवं अन्य स्रोतों से जितनी संभव जानकारी हम अपने पाठकों के लिए जुटा सकते थे वह जुटाई है । अगर इससे आप कोई त्रुटि पाते हैं तो कृपया हमें अवगत कराएं .. और अंत में हर बार की तरह इस बार भी आप की शिकायतों और सुझावों का इंतजार रहेगा ।