स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय : योगदान , महत्व , अनमोल वचन | 12 Wonderful Life Lessons Swami Vivekanand Taught Us.

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय : योगदान , महत्व , अनमोल वचन | 12 Wonderful Life Lessons Swami Vivekanand Taught Us.

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचयस्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय ( swami vivekanand : introduction )

प्रणाम मित्रों ..

भारत के गौरव एवं विद्धवान संत स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय प्राप्त करने से पहले हमें यह समझ लेना चाहिए की यदि एक साधारण मनुष्य अपनी चेतना को उस स्तर पर ले जा सकता है की योगी बन जाए .. तो अथक प्रयासों द्वारा कोई भी मनुष्य उस स्तर को प्राप्त कर सकता है और यही स्वामी जी की शिक्षा का मूल उद्देश्य भी था की ” शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक , मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके । “


आइये प्रारम्भ करते हैं …

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय .. स्वामी विवेकानंद ( Swami Vivekanand ) का जन्म 12 जनवरी ( january ) सन् 1863  को  में एक कायस्थ परिवार में हुआ था । उनके बचपन ( childhood ) का घर का नाम वीरेश्वर रखा गया था  , लेकिन उनका औपचारिक ( formal ) नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता ( calcutta ) हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे । दादा ( grand father ) दुर्गाचरण दत्ता , संस्कृत और फ़ारसी के विद्वान थे उन्होंने अपने परिवार को 25 की उम्र में छोड़ दिया और एक साधु ( monk ) बन गए । उनकी मां ( mother ) भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं ।

उनका अधिकांश समय   भगवान शिव ( God shiv ) की पूजा – अर्चना में व्यतीत होता था । नरेन्द्र के पिता और उनकी माँ के धार्मिक ( religious ) , प्रगतिशील ( progressive ) व तर्कसंगत ( rational ) रवैया ने उनकी सोच और व्यक्तित्व ( persona ) को आकार देने में मदद की बचपन से ही नरेन्द्र अत्यन्त कुशाग्र ( sharp ) बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे ।

अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे । उनके घर में नियमपूर्वक ( by law ) रोज पूजा पाठ होता था परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण ( spiritual environment ) के प्रभाव से बालक नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म ( spirituality ) के संस्कार गहरे होते गये ।

माता – पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी । ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुकता में कभी – कभी वे ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि इनके माता – पिता और कथावाचक पण्डित तक चक्कर में पड़ जाते थे ।

विवेकानंद जी की शिक्षा ( swami Vivekananda’s teachings )

सन् 1871 में , आठ साल की उम्र में , नरेन्द्रनाथ ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान ( metropolitan institute ) में दाखिला ( admission ) लिया जहाँ वे स्कूल गए 1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया । 1879 में , कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद , वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज ( presidency college ) प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन ( first division ) अंक प्राप्त किये । वे दर्शन ( philosophy ) , धर्म ( religion ) , इतिहास ( history ) , सामाजिक विज्ञान ( social science ) कला ( art ) , और साहित्य ( literature ) सहित विषयों के एक उत्साही पाठक ( enthusiastic reader ) थे । इनकी वेद ( veda ) , उपनिषद , भगवद गीता , रामायण , महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में गहन रूचि थी ।

नरेंद्र को भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित ( educate ) किया गया था , और ये नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम ( physical exercise ) में व खेलों में भाग लिया करते थे । नरेंद्र ने पश्चिमी तर्क , पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेम्बली इंस्टिटूशन ( अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज ) में किया । 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की , और 1884 में कला स्नातक ( graduation ) की डिग्री पूरी कर ली ।

सम्मेलन और भाषण ( conferences and speeches )

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय उनके इस भाषण के बिना अधूरा है ..मेरे अमरीकी ( americans ) बहनों और भाइयों ! ( sisters and brothers )

आपने जिस सम्मान सौहार्द ( cordiality ) और स्नेह ( love ) के साथ हम लोगों का स्वागत ( welcome ) किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त ( for the sake of ) खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय ( indescribable ) हर्ष ( happyness ) से पूर्ण हो रहा हैं । संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ ; धर्मों की माता ( mother of religions ) की ओर से धन्यवाद देता हूँ ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों ( sects and sects ) के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ । मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं ( certain speakers ) के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित ( designated ) करता हूँ जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों ( prachi ”s representatives ) का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कि सुदूर ( far ) देशों के ये लोग सहिष्णुता ( tolerance ) का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं । मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत ( universally accepted ) – दोनों की ही शिक्षा दी हैं । हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं ।

मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है । मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था ।

ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने महान जरथुष्ट जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है । भाईयो मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं :

रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥

अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभो ! भिन्न – भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े – मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं । यह सभा , जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा करती है :

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥

अर्थात जो कोई मेरी ओर आता है – चाहे किसी प्रकार से हो – मैं उसको प्राप्त होता हूँ । लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं ।

साम्प्रदायिकता , हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर ( despicable descendant ) धर्मान्धता ( bigotry ) इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं । वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं व उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं , सभ्यताओं को ध्वस्त करती हुई पूरे के पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं । यदि ये वीभत्स दानवी शक्तियाँ न होतीं तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता । पर अब उनका समय आ गया हैं और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टा ध्वनि हुई है वह समस्त धर्मान्धता का , तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होने वाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्यु निनाद सिद्ध हो ।

यात्राएं ( trips )

25 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए थे । तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की । विवेकानंद ने 31 मई 1893 को अपनी यात्रा शुरू की और जापान के कई शहरों ( नागासाकी , कोबे , योकोहामा , ओसाका , क्योटो और टोक्यो समेत ) का दौरा किया , चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो पहुँचे सन्‌ 1893 में शिकागो ( अमरीका ) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी । स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे । योरोप – अमरीका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे । वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द ( swami vivekanand ) को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले । परंतु ( परन्तु ) एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला । उस परिषद् में उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये । फिर तो अमरीका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ । वहाँ उनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय बन गया । तीन वर्ष वे अमरीका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की ।

योगदान तथा महत्व ( Contribution and Importance )

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय बताता है कि उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे । तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द ( swami vivekanand ) ने शिकागो , अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवायी । गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था – ” यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये । उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे , नकारात्मक कुछ भी नहीं । “

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय पढ़कर पता लगता है उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्षोँ में विवेकानन्द लगभग सशस्त्र या हिंसक क्रान्ति के जरिये भी देश को आजाद करना चाहते थे । परन्तु उन्हें जल्द ही यह विश्वास हो गया था कि परिस्थितियाँ उन इरादों के लिये अभी परिपक्व नहीं हैं । इसके बाद ही विवेकानन्द ने ‘ एकला चलो ‘ की नीति का पालन करते हुए एक परिव्राजक के रूप में भारत और दुनिया को खंगाल डाला ।उन्होंने पुरोहितवाद , ब्राह्मणवाद , धार्मिक कर्मकाण्ड और रूढ़ियों की खिल्ली भी उड़ायी और लगभग आक्रमणकारी भाषा में ऐसी विसंगतियों के खिलाफ युद्ध भी किया । उनकी दृष्टि में हिन्दू धर्म के सर्वश्रेष्ठ चिन्तकों के विचारों का निचोड़ पूरी दुनिया के लिए अब भी ईर्ष्या का विषय है । स्वामी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को जरूरत भी है लेकिन हमें याचक नहीं बनना चाहिये । हमारे पास उससे ज्यादा बहुत कुछ है जो हम पश्चिम को दे सकते हैं और पश्चिम को उसकी बेसाख्ता ( absurdity ) जरूरत है । यह स्वामी विवेकानन्द ( swami vivekanand ) का अपने देश की धरोहर के लिये दम्भ या बड़बोलापन नहीं था । यह एक वेदान्ती साधु की भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तटस्थ , वस्तुपरक और मूल्यगत आलोचना थी । बीसवीं सदी के इतिहास ने बाद में उसी पर मुहर लगायी ।

मृत्यु (death)

जीवन के अन्तिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा – ” एक और विवेकानन्द चाहिये , यह समझने के लिये कि इस विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है । ” उनके शिष्यों के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन 4 जुलाई ( july ) 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो – तीन घण्टे ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली । बेलूर में गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि ( funeral ) की गयी । इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था ।उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मन्दिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की ।

अनमोल वचन (wisdom Quotes)

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय के अनुसार शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  • शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक , मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके ।
  • शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो , मन का विकास हो , बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भर बने ।
  • बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए ।
  • धार्मिक शिक्षा , पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए ।
  • पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए ।
  • शिक्षा , गुरू गृह में प्राप्त की जा सकती है ।
  • शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए ।
  • सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये ।
  • देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाय ।
  • मानवीय एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए ।
  • शिक्षा ऐसी हो जो सीखने वाले को जीवन संघर्ष से लड़ने की शक्ती दे ।
  • स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय के अनुसार व्यक्ति को अपनी रूचि को महत्व देना चाहिए |

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निष्कर्ष (conclusion)

दोस्तो

आज हमने जाना हमारे महान बिद्धवान संत स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय , विवेकानंद जी की शिक्षा , सम्मेलन और भाषण , विवेकानंद जी की यात्राएं , योगदान तथा महत्व , मृत्यु , एवं विवेकानंद जी के अनमोल वचन के बारे में जाना उम्मीद करता हु आपको जानकारी अच्छी लगी होगी अगर आपको कोई शिकायत या सुझाव हो तो कॉमेंट अवश्य करें ।

धन्यवाद

Written by
Prateek
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