राजा रवि वर्मा ( raja ravi varma )
एक कला प्रेमी परिवार में जन्मा बच्चा , जिसे चाचा रवि वर्मा ने चित्र बनाने के लिए उत्साहित किया , जो बचपन में ही कोयले और खड़ियों से अपने भीतर छिपी प्रतिभा को तराशने लगा था । जिसने मदुरई में चित्रकला की बारीकियों को समझा , जिसने अपने जीवनकाल में लगभग दो हज़ार से ज्यादा चित्रों में प्राण फूंके । जिस के जीवन पर चल – चित्र बनाएं गए और पुस्तकें भी निरंतर लिखी गई ।
आइए कुछ और बातें जानते हैं । रंगों के राजा रवि वर्मा ( raja ravi varma ) के विषय में – पिता एज्हुमविल नीलकंठन भट्टातिरिपद और माता उमायाम्बा थम्बुरत्ति के यहाँ त्रावणकोर के निकट किलिमान्नुर गांव में २९ अप्रैल १८४८ को राजा रवि वर्मा का जन्म हुआ था । उनकी माता एक कवयित्री थी और पिता की गिनती विद्वानों में होती थी । शायद यही वजह थी जो विद्या और कला की देवी माँ सरस्वती का आशीर्वाद राजा रवि वर्मा ( raja ravi varma ) को विरासत में मिला था । और आगे चलकर वे महान चित्रकार बन पाए ।
राजा रवि वर्मा ( raja ravi varma ) से पहले त्रावणकोर में तैल रंगों के मुख्य जानकार चित्रकारों में अधिकतर रामस्वामी और अलागिरी नायडू के चित्रों को सराहा जाता था । सन 1868 में त्रावणकोर के महाराजा ने अपने परिवार के चित्र बनाने का कार्य एक डच चित्रकार थियोडोर जेन्सन को सौंपा । त्रावणकोर के महाराज राजा रवि वर्मा की प्रतिभा से परिचित थे इसलिए उन्होंने युवा राजा रवि वर्मा को इजाजत दे दी कि वह चित्र बनाते समय थियोडोर की कला का अवलोकन कर सकें । राजा रवि वर्मा थियोडोर की कला को देखकर काफी प्रभावित हुए तथा उन्होंने स्वाभ्यास द्वारा तैल चित्र बनाना शुरू किया ।
राजा रवि वर्मा ( raja ravi varma ) रामास्वामी और अलागिरी नायडू की तैल चित्रों की चित्रकारी से भी प्रभावित थे । और निरंतर अभ्यास द्वारा उन्होंने बेहतरीन तैलचित्र बनाने प्रारंभ किए जो उपरोक्त दोनों कलाकारों की अपेक्षा अधिक पसंद किए जाने लगे ।
राजा रवि वर्मा : – पुरस्कार और प्रसिद्धि
raja ravi varma :- Awards and Fame
सन 1873 में चेन्नई ( पहले मद्रास ) मैं एक चित्र प्रदर्शनी का आयोजन हुआ । इस प्रदर्शनी में राजा रवि वर्मा द्वारा बनाए गए दो चित्रों में से एक चित्र जो कि एक सुंदर स्त्री का था । सभी कला प्रेमियों द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किया गया , स्वयं मद्रास के तत्कालीन गवर्नर ने राजा रवि वर्मा से भेंट कर उनके कार्य की प्रशंसा की उन्हें १८७४ में स्नान करती हुई स्त्री के चित्र के लिए गवर्नर गोल्ड मेडल से भी सम्मानित किया गया । उनके इसी चित्र को एक अंतरराष्ट्रीय चित्र प्रदर्शनी जो कि वियना में आयोजित की गई थी में भी भेजा गया और वहां भी इस चित्र को प्रशस्ति पत्र के साथ एक और पदक दिया गया । इस चित्र को कुल ३ बार पुरस्कृत किया गया । और हर बार यह प्रथम पुरस्कार से सम्मानित हुआ । इस दौरान राजा रवि वर्मा कहीं और जगह भी सम्मानित हुए २ वर्ष प श्चात १८७६ में मद्रास की एक और प्रदर्शनी में लेखन करती हुई शकुंतला का प्रसिद्ध चित्र बनाकर प्रदर्शित किया । जिसे ड्यूक आफ बकिंघम ने खरीद लिया तथा वे राजा रवि वर्मा से प्रभावित भी हुए जब रवि वर्मा ने ड्यूक का चित्र बनाकर उन्हें दिखाया तो वे अचंभित होकर बोले कि मेरा चित्र बनाने का प्रयास यूरोप के कलाकारों ने भी किया लेकिन इतना जीवंत चित्र कोई नहीं बना पाया । १८९३ में शिकागो की एक प्रदर्शनी में उनके चित्रों को तीन स्वर्ण पदक प्राप्त हुए राजा रवि वर्मा अपनी अद्भुत कला से विश्व प्रसिद्ध होने लगे थे । उन्हें कई प्रदर्शनों में देश विदेश के राजाओं तथा उच्च पदाधिकारियों द्वारा कई बार सम्मानित किया गया । उन्होंने अपना आभार और अपनी कला का श्रेय अपने गुरु जो उनके चाचा भी थे राजा राजा वर्मा को दिया ।
राजा रवि वर्मा : – राजपरिवारों के चित्रकार
Raja Ravi Varma : – painter of royalty
राजा रवि वर्मा द्वारा बनाया गया एक चित्र सीता शपथ बड़ौदा के दीवान पी माधवराव त्रिवेंद्रम ने देखा और साथ ही उन्होंने एक वाद्य यंत्र पर जाती हुई स्त्री का चित्र भी देखा । उन्हें दोनों चित्र बेहद पसंद आए और उन्होंने दोनों ही खरीद लिए सीता शपथ उन्होंने बड़ौदा के महाराज के लिए तथा वाद्य यंत्र के साथ स्त्री के चित्र को अपने लिए खरीदार १८८१ में बड़ौदा के राजा सयाजीराव गायकवाड़ ने उन्हें बड़ौदा में आमंत्रित किया । राजा रवि वर्मा यहां लगभग 3 से 4 माह रुके और उन्होंने राज परिवार के सदस्यों के चित्र बनाएं । बड़ौदा में रहते हुए इंदौर व अन्य राज परिवारों के महाराजाओं ने भी स्वयं जाकर अपनी चित्र बनवाए १८८५ में मैसूर के राजा राम राजेंद्र वाडियार ने उन्हें वहां आने का निमंत्रण दिया यहां की राजा रवि वर्मा कुछ माह रुके । यहां उन्होंने राज परिवारों के सदस्यों के चित्र बनाएं । पुरस्कार स्वरूप उन्हें मैसूर के महाराजा ने कई उपहारों के साथ दो हाथी भी भेंट किए । इन सबके अतिरिक्त भी उन्होंने कुछ अन्य महाराजाओं के आग्रह पर उनके व्यक्तिचित्र बनाऐं । सन 1904 में लॉर्ड कर्ज़न ने उन्हें उनकी बेहतरीन चित्रकारी के लिए इंग्लैंड के राजा की तरफ से क़ैसर – ए – हिन्द स्वर्ण पदक से नवाजा । राजा रवि वर्मा ने एक लिथोग्राफिक प्रेस की भी स्थापना की थी । जो कुछ समय बाद नुकसान के कारण बंद हो गई थी । नुकसान के साथ – साथ वे बीमार भी रहने लगे थे । तथा मधुमेह से भी पीड़ित थे । अपने जीवन के अंत समय में उन्होंने भोजन भी त्याग दिया था । और बेहद कमजोर हो गए थे । औऱ फिर 2 अक्टूबर १९०६ ईसवी को कला जगत का यह बेशकीमती रत्न इस जीवन से विदा लेकर अपनी अनंत यात्रा पर चल पड़ा ।
राजा रवि वर्मा : – चित्र और करोड़ों का मूल्य
Raja Ravi Varma : – pictures and worth crores
राजा रवि वर्मा द्वारा हजारों चित्र बनाए गए हैं । लगभग २००० चित्रों की जानकारी सर्वविदित है । उनके बनाए चित्र बेहद ऊंचे दामों में बिकते हैं । कुछ ही समय पहले सोदबीज द्वारा रवि वर्मा द्वारा बनाया गया दमयंती का एक चित्र ११ करोड़ ९० लाख रुपए में बिका । और २०१७ में तिलोत्तमा नामक कृति ५ करोड़ रुपए में बिकी है । साल २००४ में क्रिस्टीज द्वारा मलयाली महिला का तैल चित्र १ ,३०,७०० डॉलर में तथा एक अन्य तैल चित्र ५ करोड़ ६५ लाख रुपए में लगभग ११ वर्ष पहले बेचा गया था । इतना ही नहीं मुंबई के पंडोलेज के द्वारा ४ वर्ष पहले राधा चांदनी में शीर्षक नामक चित्र २३ करोड़ में बिका । कई बड़े नीलाम घरों ने राजा रवि वर्मा की कृतियों को देश-विदेश में ऊंचे दामों में बेचा है ।
राजा रवि वर्मा : – नारी के विभिन्न रूपों में चित्रण
Raja Ravi Varma : – Depiction of women in various forms
इस महान कलाकार ने अपनी तूलिका से स्त्रियों का अनेक रूपों में चित्रण किया जिसमें शकुंतला उनकी प्रिय थी । उन्होंने शकुंतला को शकुंतला का दुष्यंत को प्रेम पत्र , शकुंतला जन्म , मेनका और शकुंतला आदि अनेक भंगिमाएं चित्रित की । साथ ही उन्होंने पौराणिक , ऐतिहासिक , साहित्यिक चरित्रों में भी नारी को अपनी तूलिका के रंगों से जीवंत कर दिया । उनके घटना प्रधान अंकन भी विश्व – प्रसिद्ध हुए । जैसे – विराट के दरबार में द्रौपदी , सीता – विवाह , सीता – शपथ , अरण्य वासिनी सीता , अशोक वाटिका में सीता , अहिल्या उद्धार , कंस माया आदि । उन्होंने बाद में कुछ ओलियोग्राफ़ बनाएं जिसके लिए उन्होंने जर्मन तकनीक का प्रयोग किया था । वे ओलियोग्राफ़ इतने प्रसिद्ध हुए की पूरे भारत में राजा रवि वर्मा की सरस्वती और लक्ष्मी विराजमान हो गयी ।
राजा रवि वर्मा : – पुस्तकें और साहित्य की रचना
Raja Ravi Varma : – Creation of books and literature
राजा रवि वर्मा पर अनेक पुस्तकों साहित्य और उपन्यास की रचनाएं हुई हैं उनमें कुछ मुख्य है –
राजा रवि वर्मा – पेंटर आफ कॉलोनियल इंडिया ( Raja Ravi Varma – Painter of Colonial India )
राजा रवि वर्मा – द पेंटर प्रिंस ( Raja Ravi Varma – The Painter Prince )
राजा रवि वर्मा – द मोस्ट सेलिब्रेटेड पेंटर ऑफ इंडिया ( Raja Ravi Varma – The Most Celebrated Painter of India )
तथा ई ० एम ० जे ० वेन्नियुर के द्वारा उनकी जीवनी को प्रकाशित किया गया था । रणजीत देसाई द्वारा राजा रवि वर्मा शीर्षक से मराठी में एक उपन्यास भी रचा गया जिसका विक्रांत पांडे द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद किया गया । अमर चित्र कथा जो बच्चों के साथ – साथ बड़ों के बीच भी अच्छी – खासी लोकप्रिय और चाव से पढ़ी जाने वाली चित्र कथा है । उसमें भी निर्माता अनंत पई द्वारा मूल रूप से राजा रवि वर्मा के चित्रों को ही रखा गया है ।
दोस्तों… राजा रवि वर्मा पर फिल्म भी बन चुकी है । और जब जिक्र फिल्मों का हो रहा है तो एक जानने लायक रोचक तथ्य यह भी है कि भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के ने उनके स्टूडियो में भी कार्य किया है । उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बुध ग्रह के एक क्रेटर का नामकरण भी उन्हीं के नाम पर किया गया है । उनकी 65वीं पुण्यतिथि के अवसर पर भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया जिसमें उनके विश्व प्रसिद्ध चित्र ‘ दमयंती और हंस ‘ के साथ उनका व्यक्ति चित्र भी है । राजा रवि वर्मा एक विलक्षण प्रतिभा के स्वामी थे वह कई भाषाओं के ज्ञाता थे । उन्हें अंग्रेजी , तमिल , गुजराती और जर्मन आदि भाषाओं का भी ज्ञान था । वह भले ही आज हमारे बीच नहीं है लेकिन वह सदैव कला – प्रेमियों के ह्रदय में अमर रहेंगे ।
उम्मीद है कि भारत के इस महान चित्रकार पर यह संछिप्त पोस्ट आपको पसंद आएगी आपके सुझाव व शिकायतें सादर आमंत्रित हैं ।