दोस्तों 🙏
मनुष्य सृष्टि का सबसे बुद्धिमान प्राणी है । उसने अपनी बुद्धिमता से पाताल की गहराई से लेकर आकाश की ऊंचाई तक को नाप लिया । लेकिन जब वह इतना बुद्धिमान है तो उसे हर वर्ष विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस ( WORLD NATURE CONSERVATION DAY ) मनाने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी है ?
आइए नजर डालते हैं ..
● हम अपने घर के नियमों का पालन करते हैं ताकि घर में प्रेम और शांति बनी रहे ।
● हम ट्रैफिक ( यातायात ) के नियमों का पालन करते हैं , ताकि हम सुरक्षित घर पहुँच सके ।
● हम समाज के बनाए नियमों का पालन करते हैं ताकि कारागार और पुलिस कार्यवाही से बच सके ।
● हम संविधान का पालन करते हैं 26 जनवरी , 15 अगस्त, और 2 अक्टूबर को देेेश की एकता और अखंडता को बनाए रखने की कसम खाते हैं । ताकि देश की उन्नति में अपना योगदान दे सकें ।
लेकिन
हम प्रकृति के बनाए नियमों का पालन नहीं करते । इसके विपरीत बार-बार उल्लंघन करते हैं । जिससे कई प्रकार का असंतुलन पैदा होता है । जो हमारे साथ साथ भावी पीढ़ी के लिए भी बेहद हानिकारक है । हम अपने क्रियाकलापों द्वारा ये जताते हैं कि प्रकृति पर सिर्फ मनुष्य का एकाधिकार है । अन्य वन्य जीव – जंतुओं का जीवन मायने नहीं रखता ।
हम प्रकृति से अनमोल संसाधन ले रहे हैं । जैसे – शुद्ध हवा , खनिज , पानी , मृदा आदि । और लौटा रहे हैं – वृक्षों का कटान , मृदा , जल और कई प्रकार के प्रदूषण आदि । यह मनुष्य की नासमझियों का ही परिणाम है , जिसका खामियाजा उन जीव – जंतुओं को भुगतना पड़ रहा है । जिनकी प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है या विलुप्ति के कगार पर हैं । इस जागरूकता को फैलाने के उद्देश्य से ही विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस ( WORLD NATURE CONSERVATION DAY ) मनाया जाता है ।
आधुनिक से अत्याधुनिक बनने की मानव की प्यास प्रतिदिन या यूँ कहा जाये की प्रतिक्षण बढ़ रही है । तो कोई अतिशियोक्ति न होगी । फलस्वरूप कुदरत रोज इंसान के हाथों थोड़ा – थोड़ा जख्मी हो रही है । और इंसान इससे बेपरवाह है । हां ! मनुष्य ने निएंडरथल से लेकर आज के आधुनिक मानव बनने के लिए संघर्ष किया और उन्नति की । लेकिन प्रकृति के सहयोग के बिना क्या यह संभव था ?? और बदले में आधुनिक मनुष्य ने कुदरत को क्या लौटाया ??
◆ रासायनिक कूड़ा
◆ हवा में घुलता जहर
◆ जैव विविधता का नाश
◆ क्षरण
◆ ध्वनि , जल एवं अन्य प्रदूषण
आए दिन समाचार पत्रों और टेलीविजन के माध्यम से खबर आती है । कि जंगली जानवर शहरों से सटे गांवों में भोजन की तलाश में आ जाते हैं । और पालतू जानवरों को अपना आहार बनाने लगे हैं । ये घुसपैठ शुरू किसने की ??
बढ़ती जनसंख्या के कारण गांव कस्बों में , कस्बे नगरों में और नगर महानगरों में बदल रहे हैं । लकड़ी , भोजन और आशियाने की तलाश में मनुष्य पेड़ों की हत्या किया जा रहा है । फलस्वरूप जंगल मर रहे हैं । और जंगली पशु धीरे-धीरे भोजन और अपने प्राकृतिक निवास से दूर हो रहे हैं । राजनीतिक महारथियों को चाहिए कि वे अपने – अपने छेत्रों के ग्रामीणों और दूसरे अशिक्षित समुदायों के लिए शैक्षणिक और व्यवसायिक अवसर उनके गांवों और कस्बों में ही उपलब्ध कराएं ताकि वे भी शिक्षित होकर अपने अधिकार जान पाएंगे और ..
● जहां है वहीँ अपने रोजगार के अवसर तलाशेंगे बजाय महानगरों की ओर रूख़ करने के ।
● विवाह योग्य आयु में ही विवाह करेंगे ।
● जनसंख्या नियंत्रण विधियों के बारे में जान पाएंगे ।
● छोटा परिवार सुख का आधार इस नीति के दूरगामी परिणाम समझेंगे और इसे अमल में लाएंगे ।
● संतुलित भोजन स्वयं लेंगे और अपने छोटे परिवार को भी उपलब्ध कराएंगे ।
इससे हमारे गांव सुरक्षित रहेंगे पलायन रुकेगा और वृक्षों का कटान भी । जिससे जानवरों की विभिन्न प्रजातियां जो बीते कई वर्षों से विलुप्त की ओर बढ़ रही हैं । उस पर विराम लगना संभव हो पाएगा ।
जनसंख्या के साथ-साथ प्रदूषण भी एक प्रमुख कारक है प्रकृति के ह्रास का । दोस्तों हम सरकार को तो दोष देते हैं । लेकिन जो ठोस , इलेक्ट्रॉनिक व रासायनिक कचरा हम फैला रहे हैं । उसके निष्पादन के लिए हमारे क्या प्रयास हैं हमें इस पर भी गौर करने की आवश्यकता है । उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट और चिमनीओं एवं वाहनों से निकलता धुँआ हमारेे फेफड़ों के साथ-साथ प्राण वायु को भी दूषित कर रहा है । जिसके कारण वैश्विक ताप मंडल में निरंतर वृद्धि हो रही है । और ध्रुवीय हिम खंडो की बर्फ का पिघलना भी बदस्तूर जारी है यह इसी का परिणाम है । कि पिछले कुछ वर्ष सबसेे गर्म वर्षों मेंं गिने जाते हैं । अगर यह सिलसिला अभी नहीं रुका तो आने वालेेे कुछ वर्षों मे मानव सभ्यता को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा ।
हम क्या प्रयास कर सकते हैं
ऐसा नहीं है कि वाहनों में चलना बंद कर दें । या फैक्ट्रियों और उद्योगों को बंद कर दें , लेकिन बुद्धिमान होने के कारण मानव से संतुलन की अपेक्षा की जाती है ।
■ हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है यह तय है कि उद्योगों के माध्यम से रोजगार और उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन होता है लेकिन यह भी तय है कि उनसे प्रदूषण होता है इसलिए उन पर सख्त निगाह रखने की आवश्यकता है ताकि इस बात की जानकारी मिलती रहे कि उद्योगों के लिए जो मानक सरकार ने तय किए हैं वे इसका पालन भली-भांति कर रहे हैं या नहीं उद्योगों , फैक्ट्रियों आदि से निकला कचरा सीधा नदियों में न बहाकर एक सही निष्पादन प्रणाली के माध्यम से निकाला जाए ।
■ धरती पर पीने योग्य जल बहुत कम है लगभग 3% से भी कम हमें नदियों और तालाबों के माध्यम से सिर्फ 0.6 प्रतिशत ही उपलब्ध है । हमेंं जल स्रोतों की उपलब्धता और वर्षा जल संरक्षषण पर ध्यान देने की आवश्यक्ता है । वर्षा जल संचयन रेन वाटर हार्वेस्टिंग ( Rainwater harvesting ) तकनीक इसके लिए बेहद उपयोगी है ।
■ सिर्फ घर और बड़ी इमारतें ही नहीं राजमार्ग बनाने के लिए भी जंगलों का कटान और खनन किया जाता है । जिससे पक्षियों और पशुओं के लिए संरक्षित वन्य जीव गलियारे नष्ट हो जाते हैं जिससे उनकी प्रजातियों पर विलुप्ति का संकट गहराता है । सरकार के साथ-साथ हमें भी उन जीव जंतुओं के संरक्षण की दिशा में प्रयास करने होंगे । जिससे मानव और पशु में द्वंद की स्थिति न हो , विकास आवश्यक है लेकिन अवैज्ञानिक ढंग से नही ।
■ प्रकृति के पास हर रोग का उपचार है लेकिन हम रसायनों के आदि हो चले हैं हम अपने घरों में बरगद , पीपल या बांस के पेड़ नहीं लगा सकते , लेकिन छोटे पौधे तो लगा ही सकते हैं । यह ना सिर्फ हवा को साथ रखते हैं बल्कि तनाव दूर करने के साथ-साथ घर की सुंदरता भी बढ़ाते हैं । तथा वैज्ञानिकों के अनुसार यह ध्वनि प्रदूषण को काबू रखने की काबिलियत भी रखते हैं ।
■ पहाड़ कुदरत का विस्तार है । लेकिन मानव इसके विस्तार पर भी रोक लगाने पर आमादा है । बांध निर्माण और खनन इसके प्रमुख उदाहरण है । और रही सही कसर पर्यटन ने पूरी कर दी है । यह कुछ हद तक मानव विकास के लिए जरूरी हैं लेकिन इस हद तक नहीं की असंतुलन को न्यौता दें । स्थानीय लोग जब तक आगे नहीं आएंगे तब तक पहाड़ों की छाती यूं ही विकास के नाम पर छलनी की जाएगी पहाड़ धरती के फेफड़े हैं । जब तक पहाड़ जीवित हैं तब तक धरती ।
■ हम अपने बच्चों को यह बड़े जोर – शोर से बताते हैं । कि आने वाले 10 सालों में रोबोट हर घर में उपलब्ध होगा । लेकिन यह कभी नहीं बताते कि अगर जंगली जीव जंतु , पेड़ – पौधे , पहाड़ , नदियां ना रहे तो तुम्हारा अस्तित्व भी नहीं होगा । ” जो हमारे पास होता है वही हम दूसरों को भी देते हैं ” । क्योंकि हम खुद प्रकृति के बढ़ते दर्द के प्रति जागरूक नहीं हैं । इसलिए उसे हम आगे भी नहीं बताते । संवेदनशील होकर इस विषय पर सोचें खुद भी जागरूक हो और दूसरों को भी जागरूक करें ।
दोस्तों
धरती केवल इंसानों की नहीं है सभी जीव धारियों का इस पर समान अधिकार है वे भी फलने फूलने और अपने विस्तार के लिए स्वतंत्र हैं । ठीक वैसे ही जैसे मनुष्य लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे की परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य यह भूल ही चुका है । कि उसके द्वारा बनाए गए कृत्रिम संसार से अलग भी एक संसार है जिसे साफ सुथरा सुंदर बनाए रखना भी उसकी ही जिम्मेदारी है लेकिन कुछ ही लोग हैं जो अपनी इस जिम्मेदारी को समझते हैं और पहल करते हैं ।
प्रकृति की अपनी एक अलग भाषा और अपना संगीत होता है कवियों से लेकर वैज्ञानिकों तक अपनी कल्पनाओं और खोज के जरिए कुदरत से संवाद स्थापित करने की कोशिश करते हैं । और मुट्ठी भर कामयाब भी होते हैं । लेकिन अब वक्त आ गया है कि हमें अपनी बनावटी दुनिया से बाहर आकर प्रकृति के संकेतों को भाषा को और संगीत को गौर से सुनना और समझना होगा ताकि हम ईश्वर के इस अनमोल उपहार को अपने भविष्य के नन्हे हाथों में भी सुरक्षित सौंप सकें।
दोस्तों …… उम्मीद है आपको यह पोस्ट पसन्द आएगी । और आप अपने स्तर पर प्रकृति की सुंदरता को बनाये रखने के प्रयास करेंगे । हर बार की तरह इस बार भी आपकी शिकायतों और सुझावों इंतजार रहेगा ..
धन्यवाद